अदृश्य/प्रच्छन्न बेराजगारी क्या है ? (What is Disguised Unemployment) पर बात करने से पहले बेरोजगारी क्या होती है उस पर बात कर लेते हैं I
यदि किसी व्यक्ति के पास क्षमता, इच्छा और योग्यता होने के बाद भी उसको रोजगार नहीं मिलता तो उसे बेरोजगार कहा जाता हैI
अब यहाँ हम इच्छा, क्षमता और योग्यता क्या इसके बारे में जान लेते है
इच्छा: ये स्वयं पर निर्भर करता हैं कि आपकी इच्छा है रोजगार पाने कि या नहीं
क्षमता: यदि आपको रोजगार पाना है तो आप उसके लिए शारीरिक/मानसिक रूप से स्वस्थ है या नहीं अर्थात दिव्यांग, बीमार तो नहीं है। उदहारण के लिए यदि आपको आर्मी की नौकरी करनी है तो आपको फिजिकल और मेडिकल टेस्ट पास करना होता है
योग्यता: इसमें यदि किसी नौकरी के लिए क्लास 12 पास की जरुरत है और आपक केवल 10 पास है तो आप उस नौकरी के लये अयोग्य हैं

अदृश्य/प्रच्छन्न बेराजगारी क्या है ? (What is Disguised Unemployment)
भारत में सबसे बड़ी समस्या अदृश्य/प्रच्छन्न बेराजगारी की हैं यह वह स्थिति है जिसमें किसी कार्य को करने के लिये जितने श्रमिकों की आवश्यकता होती है उससे अधिक श्रमिक काम पर लगे हुए होते हैं। यदि उनमें से कुछ श्रमिकों को कार्य से हटा दिया जाए तो भी कुल उत्पादकता में कोई प्रभाव नहीं पड़े । इसका मतलब ये हुआ कि कार्य के लिए जरुरत से ज्यदा लोग लगे हैं उदाहरण के लिए, किसी कार्य केवल दो श्रमिक अच्छी तरह कर सकते हैं परन्तु यदि कार्य पर पाँच श्रमिक लगे हुए हों तो तीन श्रमिक अदृश्य बेरोजगारी को व्यक्त करते हैं।
भारत में संयुक्त परिवार की अधिकता है तथा जोत( field) का छोटे आकार का होने के के कारण परिवार के सभी लोग सीमित भूमि पर खेती करने के काम में लगे रहते हैं। यदि उनमें से कुछ लोगों को किसी दूसरे काम पर लगा दिया जाए तो भी उत्पादकता में कोई कमी नहीं होगी।
प्रभाव
- आर्थिक: प्रच्छन्न बेरोज़गारी अर्थव्यवस्था के लिए हानिकारक होती है क्योंकि इसका मतलब है कि मानव संसाधनों का सही उपयोग नहीं हो रहा है। इससे आर्थिक विकास की गति धीमी हो जाती है।
- सामाजिक: यह स्थिति समाज में असमानता और गरीबी को बढ़ावा देती है क्योंकि प्रच्छन्न बेरोज़गार लोगों की आय कम होती है।
समाधान
- औद्योगिकीकरण: औद्योगिकीकरण को बढ़ावा देना, जिससे कृषि पर निर्भरता कम हो और नए रोजगार के अवसर उत्पन्न हों।
- कौशल विकास: श्रमिकों के लिए कौशल विकास कार्यक्रम शुरू करना ताकि वे अन्य उद्योगों में काम करने के योग्य बन सकें।
- सुधारात्मक नीतियाँ: सरकार द्वारा सुधारात्मक नीतियों को लागू करना जो कृषि और अन्य पारंपरिक क्षेत्रों में प्रच्छन्न बेरोज़गारी को कम करने में सहायक हों।
प्रच्छन्न बेरोज़गारी एक महत्वपूर्ण समस्या है, जिसे हल करने के लिए ठोस प्रयासों और योजनाओं की आवश्यकता है ताकि अधिकतम मानव संसाधनों का उपयोग किया जा सके और आर्थिक विकास को बढ़ावा दिया जा सके।
मौसमी बेरोजगारी (Seasonal Unemployment)
भारत के कुछ हिस्सों में, लोगों को साल के कुछ समय में काम नहीं मिल पाता है क्योंकि वे खेती में काम करते हैं, जो केवल कुछ खास मौसमों में ही व्यस्त रहती है। इसका मतलब है कि उन्हें फिर से काम पाने के लिए अगले रोपण मौसम तक इंतजार करना पड़ता है। इन समयों के दौरान बिना नौकरी वाले लोगों की संख्या अलग-अलग जगहों पर खेती के तरीके के आधार पर अलग-अलग हो सकती है।
ऐसा अनुमान लगाया गया है कि आमतौर पर जो किसान साल में एक फसल की बुवाई करता है वह 5 से 7 महीने तक बेरोजगार रहता है।
इसमें मौसम बदलते ही काम की मांग भी बदल जाती है। यह बेरोजगारी अस्थायी होती है और उन उद्योगों में ज्यादा होती है , जहां सिर्फ खास मौसम के दौरान ही काम मिलता है ।
खास क्षेत्रः यह मुख्य रूप से कृषि, पर्यटन, निर्माण और कुछ विनिर्माण उद्योगों में देखी जाती है । उदाहरण
कृषि क्षेत्रः फसलों की बुवाई और कटाई के दौरान काम की मांग बढ़ जाती है, लेकिन बाकी समय में अक्सर किसानों के पास काम नहीं होता । उदाहरण के लिए चावल की रोपाई के दौरान मजदूरों की ज्यादा जरूरत होती है , लेकिन फसल कटने के बाद काम कम हो जाता है।
पर्यटन उद्योगः पर्यटन स्थलों पर पर्यटकों की आमद मुख्य रूप से छुट्टियों और त्योहारों के मौसम में बढ़ जाती है। इस दौरान होटल , गाइड , परिवहन आदि से जुड़े लोगों को काम मिल जाता है, लेकिन ऑफ सीजन में वे बेरोजगार हो जाते हैं ।
निर्माण उद्योगः कुछ इलाकों जैसे ज्यादा गर्मी या ठंड में निर्माण कार्य नहीं हो पाता
विनिर्माण उद्योग: कुछ उत्पादों की मांग केवल विशिष्ट मौसम के दौरान होती है , जैसे दिवाली के दौरान पटाखा कारखानों में काम बढ़ जाता है , लेकिन बाकी समय के दौरान कोई काम नहीं होता है ।
प्रभाव
आर्थिक प्रभाव : मौसमी बेरोजगारी के कारण मजदूरों की आय अस्थिर हो जाती है , जिससे उनकी आर्थिक स्थिति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है ।
सामाजिक: बेरोजगारी के दौरान मजदूरों को अन्य नौकरियों की तलाश करनी पड़ती है , जिससे उनकी सामाजिक स्थिति और आत्मसम्मान प्रभावित होता है ।
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